वो अधूरी सी तारीफ, वो अधूरी सी बातें,
वो दूर की एक झलक, वो ख्वाबों से भरी रातें।
कुछ टूटा तो तेरे दिल में भी होगा,
जब अनकही बातें अनकही ही रह गई;
कमी तुझको भी मेरी खलती तो होगी,
जब तुझ में किसी को उसका जहान नहीं दिखता होगा;
वो अधूरी सी तारीफ, वो अधूरी सी बातें,
वो दूर की एक झलक, वो ख्वाबों से भरी रातें।
कुछ टूटा तो तेरे दिल में भी होगा,
जब अनकही बातें अनकही ही रह गई;
कमी तुझको भी मेरी खलती तो होगी,
जब तुझ में किसी को उसका जहान नहीं दिखता होगा;
Amid life's fabric woven with care,
I served and cared; emotions laid
bare.
Yet shadows emerge, whispers of
disdain,
From those I held close, my efforts in
vain.
I gave my all, with intentions so pure,
Yet the perception
shifts, motives obscure.
It stings like a wound,
a deep-seated pain,
To see bonds, unravel,
like tears in the rain.
Misunderstood intentions, a bitter pill to swallow,
In the web of relations,
a thread starts to hollow.
I rise with grace,
resilient and strong,
For not all value the
tune of my song.
I'll carry the scars, but not as a weight,
They're lessons in love,
not a twist of fate.
And if someone perceive me through a distorted lens,
I'll step into the light where authenticity mends.
Yet in their judgment, a clouded affair.
In this mosaic of life, love remains rare
If judgment distorts, and connections undo,
I'll walk away, for my worth holds true.
यूँ तो तारीफ़
मेरी कभी करते नहीं,
पर जब कमियां
नहीं निकालते,
समझ जाती हूँ
मैं ।
जब कहते हो,
" इवू तुम पर गया है ",
और पलट कर,
इवू से कहते हो,
"इवू बड़ा
क्यूट है तू ",
सबकुछ समझ जाती
हूँ मैं।
लगता है फिक्र
नहीं है मेरी,
पर जब बीमार
होती हूँ,
माँ - बाप बन
कर,
मुझे और घर
दोनों को सँभालते हो,
तब, समझ जाती
हूँ मैं।
रोज़ घर के काम
में,
हाथ नहीं बटाते,
लेकिन जिस दिन
ऑफिस चली जाऊँ,
इवू का पूरा
ध्यान रखते हो,
इन तुम्हारी
बातों से,
सब समझ जाती
हूँ मैं ।
जब रात होते
होते,
थक कर चूर मैं,
बकवास कभी कर
दू,
तब नाराज़ नहीं
होकर,
मुझसे बतियाते
हो तुम,
तुम कितना समझते
हो मुझे,
तब समझ जाती
हूँ मैं ।
घूमने नहीं
ले जाते, डिनर नहीं कराते,
बहार का खाना
कितना बुरा है,
बार बार याद
दिलाते,
पर चटोरी कहकर,
जब घर पर मोमो ले आते हो,
तब समझ जाती
हूँ मैं ।
बोहोत भूक है,
कुछ अच्छा खिला दे; कहके,
मेरे चेहरे
पे थकान देख कर, कहते हो
"यार बहार
का खाने का मन है ",
मेरे लाख कहने
पर भी,
जब कुक को नहीं
हटाते हो,
इस बात से सब
समझ जाती हूँ मैं।
हर संडे, आधा
दिन क्रिकेट खेलने के बाद,
जब वक़्त इवू
के साथ बिताते हो,
मुझे पता है
तुम,
कितना थक जाते
हो,
जताते नहीं
पर, सब समझ जाती हूँ मैं ।
बातें नहीं
करते सारा सारा दिन,
न ही सुनते
हो मेरी बातों को,
पर जब इवू से
बात, करने लगु मैं;
कहते हो
"मुझसे नहीं बात करते दोनों",
तब समझ जाती
हूँ मैं ।
जब बार बार
नाम पुकारते हो मेरा,
क्यों बुला
रहो, पुकारने के ढंग से,
समझ जाती हूँ
मैं।
हर वक़्त, तुम्हारे
पास वक़्त नहीं होता,
पर जितना भी
होता है,
वो कितना खास
है, समझ जाती हूँ मैं ।
कहते नहीं कभी
कि,
चाहते हो मुझे,
पर हर बुरे
वक़्त में, जब साथ निभाते हो,
मैं क्या हूँ
तुम्हारे लिए,
बिना कुछ सुने,
समझ जाती हूँ मैं ।
आंखें कुछ नम सी थी और मन में था कुछ शोर ;
आंख बंद कर इश्वर से पूछा,
ईश्वर का इशारा था कुछ इस ओर,
"तेरी मंज़िल कुछ और थी, रास्ता कुछ था और ,
बच्पन से जो ज़िन्दगी जी तुने, उसका उदेश्य था कुछ और।
इसलिए तेरे मन में उठता रहता है,
एह्सासो का तूफ़ान घना,
अब हठ छोड़, समानता भरे जीवन का,
क्यों कर रही ये बचपना।
तू नारी है, तुझे हौसला रखना होगा,
तू नारी है, तुझे हस्ते रहना होगा;
तेरे त्यागों के लिए, तुझे कोइ ना पदक मिलेगा ,
कइ बार तेरी उम्मीदों के एहसासों को झड़प मिलेगा ,
जवाब निष्ठुर कड़क मिलेगा ।
तू नारी है, जोभी अच्छा तू काम करेगी, उसे कर्त्तव्य समझा जाएगा ;
तू नारी है, तेरे आज़ाद विचारो को, तेरे संस्कारों से तौला जाएगा ;
इस्लिए मन मे कोइ गाँठ ना रख्, तेरा जीवन मैने थोड़ा कठिन बनाया है,
ये समझ ले, संघर्षों से जूझने के लिए, तुझे इस धर्ती पे लाया है ।
तू नारी है, किसी से कोइ चाह न कर,
तू नारी है, तू मेहनत कर, अच्छी राह पकड़,
तू बस इतना कर, दूसरी नारी का सम्मान कर,
जो तूने सहा अपने जीवन में,
उसको पैतृक धन समझ कर, उसका उत्तरदान ना कर।
तेरे जीवन पे संयम लगाने वाली तूझे और भी नारी मिल जाएँगी ,
उन में से तू एक ना बन, नारी सशक्त तभी बन पाएंगी ।
अन्यथा ऐसा ही नारी जीवन है,
ऐसे ही चलता जायेगा,
तू नारी है, तुझे इज़्ज़त देने,
मानव साल में एक दिन तेरे लिए बनाएगा,
और उस एक दिन तुझे सम्मान से देखा जाएगा,
वो दिन महिला दिवस कहलायेगा,
वो दिन महिला दिवस कहलायेगा । "
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सुनो गगन की गहन गरीमा,
दुनिया में प्रकाश फैलाये;
जैसे सूरज की लालीमा ,
गगन पे अपना गुंजन गाये;
गुरु ही जग के हैं स्वामी,
दूर करें सबकी खामी;
मंज़िल तक ले जाएँ गुरू,
गुरु पर तुम ही तुम करो गुरूर ;
गुरु पिता हैं, गुरु हैं माता,
बिना गुरु कुछ हमे न आता,
जन्म से लेकर मृत्यु तक,
ऋणि रहेंगे गुरु के सब ;
चूमे चोटियां चलकर चिन्हों पर जिनके;
वो गुरु हैं, हम उनके लघु से तिनके,
गुरु का प्रेम है अमूल्य, है अपरम्पार ,
जिसके बिना सभी का जीवन है बेकार !
क्यों एक ही दिन उन्हें याद करें,
जो गुरु हमें आबाद करें,
हर दिन उनका हो,
बस यही रहे फरमान,
जिसने बनाया हम सबको आदमी से इंसान।
मुझे कविता लिखना पसंद है… इन्हें कविता पढ़ना बिलकुल पसंद नहीं…. इसलिए अक्सर इनसे नाराज़ होकर इन्हीं की शिकायत… पन्नों में उतार देती हूँ… जान...