Tuesday, December 26, 2023

Beneath the Weave of Time



Amid life's fabric woven with care,

I served and cared; emotions laid bare.

Yet shadows emerge, whispers of disdain,

From those I held close, my efforts in vain.


I gave my all, with intentions so pure,

Yet the perception shifts, motives obscure.

It stings like a wound, a deep-seated pain,

To see bonds, unravel, like tears in the rain.

 

Misunderstood intentions, a bitter pill to swallow,

In the web of relations, a thread starts to hollow.

I rise with grace, resilient and strong,

For not all value the tune of my song.


I'll carry the scars, but not as a weight,

They're lessons in love, not a twist of fate.

And if someone perceive me through a distorted lens,

 I'll step into the light where authenticity mends.


Yet in their judgment, a clouded affair. 

In this mosaic of life, love remains rare

If judgment distorts, and connections undo,

 I'll walk away, for my worth holds true.

 

Wednesday, December 21, 2022

 

यूँ तो तारीफ़ मेरी कभी करते नहीं,

पर जब कमियां नहीं निकालते,

समझ जाती हूँ मैं ।

 

जब कहते हो, " इवू तुम पर गया है ",

और पलट कर, इवू से कहते हो,

"इवू बड़ा क्यूट है तू ",

सबकुछ समझ जाती हूँ मैं।

 

लगता है फिक्र नहीं है मेरी,

पर जब बीमार होती हूँ,

माँ - बाप बन कर,

मुझे और घर दोनों को सँभालते हो,

तब, समझ जाती हूँ मैं।

 

रोज़ घर के काम में,

हाथ नहीं बटाते,

लेकिन जिस दिन ऑफिस चली जाऊँ,

इवू का पूरा ध्यान रखते हो,

इन तुम्हारी बातों से,

सब समझ जाती हूँ मैं ।

 

जब रात होते होते,

थक कर चूर मैं,

बकवास कभी कर दू,

तब नाराज़ नहीं होकर,

मुझसे बतियाते हो तुम,

तुम कितना समझते हो मुझे,

तब समझ जाती हूँ मैं ।

 

घूमने नहीं ले जाते, डिनर नहीं कराते,

बहार का खाना कितना बुरा है,

बार बार याद दिलाते,

पर चटोरी कहकर, जब घर पर मोमो ले आते हो,

तब समझ जाती हूँ मैं ।

 

बोहोत भूक है, कुछ अच्छा खिला दे; कहके,

मेरे चेहरे पे थकान देख कर, कहते हो

"यार बहार का खाने का मन है ",

मेरे लाख कहने पर भी,

जब कुक को नहीं हटाते हो,

इस बात से सब समझ जाती हूँ मैं।

 

हर संडे, आधा दिन क्रिकेट खेलने के बाद,

जब वक़्त इवू के साथ बिताते हो,

मुझे पता है तुम,

कितना थक जाते हो,

जताते नहीं पर, सब समझ जाती हूँ मैं ।

 

बातें नहीं करते सारा सारा दिन,

न ही सुनते हो मेरी बातों को,

पर जब इवू से बात, करने लगु मैं;

कहते हो "मुझसे नहीं बात करते दोनों",

तब समझ जाती हूँ मैं ।

 

जब बार बार नाम पुकारते हो मेरा,

क्यों बुला रहो, पुकारने के ढंग से,

समझ जाती हूँ मैं।

हर वक़्त, तुम्हारे पास वक़्त नहीं होता,

पर जितना भी होता है,

वो कितना खास है, समझ जाती हूँ मैं ।

 

कहते नहीं कभी कि,

चाहते हो मुझे,

पर हर बुरे वक़्त में, जब साथ निभाते हो,

मैं क्या हूँ तुम्हारे लिए,

बिना कुछ सुने, समझ जाती हूँ मैं ।

 

 

 

 

 

Monday, March 8, 2021

Happy Women's Day!

आंखें कुछ नम सी थी और मन में था कुछ शोर ;

आंख बंद  कर इश्वर से पूछा,

ईश्वर का  इशारा था कुछ इस ओर,


"तेरी मंज़िल  कुछ और थी, रास्ता  कुछ था और ,

बच्पन से जो ज़िन्दगी जी तुने, उसका  उदेश्य था  कुछ और।

इसलिए तेरे मन में उठता रहता है,

एह्सासो का तूफ़ान घना,

अब हठ छोड़, समानता भरे जीवन का,

क्यों  कर रही ये बचपना। 


तू नारी है, तुझे हौसला रखना होगा,

तू नारी है, तुझे हस्ते रहना होगा;

तेरे त्यागों के लिए,  तुझे कोइ ना पदक मिलेगा ,

कइ  बार तेरी उम्मीदों के एहसासों  को झड़प  मिलेगा , 

जवाब  निष्ठुर कड़क मिलेगा  ।


तू नारी है,  जोभी अच्छा तू काम करेगी, उसे कर्त्तव्य समझा जाएगा ;

तू नारी है,  तेरे आज़ाद विचारो  को, तेरे संस्कारों से तौला जाएगा ;

इस्लिए मन मे कोइ गाँठ ना रख्, तेरा जीवन मैने थोड़ा कठिन बनाया  है,

ये  समझ ले, संघर्षों  से जूझने के लिए, तुझे इस धर्ती पे लाया  है ।


तू नारी है, किसी से कोइ चाह न कर,

तू नारी है, तू  मेहनत  कर, अच्छी राह पकड़,

तू बस इतना कर, दूसरी नारी का सम्मान कर,

जो तूने सहा अपने जीवन में, 

उसको पैतृक धन समझ कर, उसका उत्तरदान ना कर।  

तेरे जीवन पे संयम लगाने वाली तूझे और भी नारी मिल जाएँगी , 

उन में से तू एक ना बन, नारी सशक्त तभी बन पाएंगी ।

अन्यथा ऐसा ही नारी जीवन है,

ऐसे ही चलता जायेगा,

तू नारी है, तुझे इज़्ज़त देने,

मानव साल में एक दिन तेरे लिए बनाएगा,

और उस एक दिन तुझे सम्मान से देखा जाएगा,

वो दिन महिला दिवस कहलायेगा,

वो दिन महिला दिवस कहलायेगा ।  "




Saturday, September 5, 2020

गुरु

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 सुनो गगन की गहन गरीमा,

दुनिया में प्रकाश फैलाये;

जैसे सूरज की लालीमा ,

गगन पे अपना गुंजन गाये;


गुरु ही जग के हैं स्वामी,

दूर करें सबकी खामी;

मंज़िल तक ले जाएँ गुरू,

गुरु पर तुम ही तुम करो गुरूर ;


गुरु पिता हैं, गुरु हैं माता,

बिना गुरु कुछ हमे न आता,

जन्म से लेकर मृत्यु तक,

ऋणि रहेंगे गुरु के सब ;


चूमे चोटियां चलकर चिन्हों पर जिनके;

वो गुरु हैं, हम उनके लघु से तिनके,

गुरु का प्रेम है अमूल्य, है अपरम्पार ,

          जिसके बिना सभी का जीवन है बेकार ! 

           

क्यों एक ही दिन उन्हें याद करें,

जो गुरु हमें आबाद करें,

हर दिन उनका हो,

बस यही रहे फरमान,

जिसने बनाया हम सबको आदमी से इंसान।  



Tuesday, June 2, 2020

सोनू सूद

सुदंर सूरत
और अत्यंत सुंदर सीरत, की मूरत,
जिसने जाना दुःख से रोते, बिलखते,
आज हर गरीब की ज़रुरत।

मंदिर के दरवाज़े जब हो गए थे बंद,
भगवान बनकर लोगो के बीच, प्रकट हुए थे  ये खुद,
जब हम में से कुछ लोग, कुछ धन दान देकर, बैठे रहे अपने घरो में,
ये इंसान, उन हताश बेसुध लोगो के लिए, खुद सड़को पे रहा मौजूद।

आज हर माँ
आप सी संतान चाहेगी;
आप सा आचरण,
अपने बच्चे को सिखाएगी;

जो आपने  मिलवा दिया आज,
इन लाखों परिवारों को,
ये सम्पूर्ण भारत लेगा प्रेरणा,
देख कर आप के विचारो को,

आज आपकी  निऱ्स्वार्थ, निष्ठा से,
वो गरीब, झूम रहा ख़ुशी से कूद ;
हम सबका बहुत बहुत, अभिवंदन स्वीकार करिये ,
दिल के सबसे धनी, आदरणीय सोनू सूद!




Saturday, May 30, 2020

कन्या भ्रूण हत्या


लड़का है या लड़की गर्भ में,
इसकी जानकारी लेना है पाप;
जिनकी वजह से यह पोस्टर लगते हैं, अस्पतालों में;
धन्य हैं, वो माँ बाप.

सच में धन्य हैं, वो माँ... 

कि, चाहती नहीं की उसकी लड़की को, देखना पड़े ये स्वार्थ से भरा जग,
कि, दुनिया जले उससे, देख कर उसके आसमा को छूते पग;
कि, उसकी लड़की महसूस करे, हर कदम पे होता पक्षपात,
कि, उसे सुन्ना पड़े की है वो, परिवार पर एक बोझ मात्र,
कि, उसे हर जनम में देना पड़े अग्नि परीक्षा,
कि, वो खुद को ही दबाने की, ज़िन्दगी भर लेती रहे शिक्षा;

इसलिए उसे पाल पोस कर, एक अच्छे जीवन का भरम क्यों दें,
कि उससे ये उम्मीद की जाये, की वो आगे जाकर, किसी लड़की को जनम क्यों दे; 

लड़की को ना जनम देने का, यही कारण रहा होगा,
या ये वजह होगी, कि स्वयं माँ का जीवन लड़की बनकर, बहुत दुर्भाग्य पूर्ण रहा होगा।

वरना और क्या वजह हो सकती हैं;
जो आया ही नहीं इस दुनिया में, उसे धुत्कारने की,
एक कोख में, पनपे आत्मनिर्भर बीज को मारने की.

अरे ये लड़की तो इतनी आत्मनिर्भर है कि,
इसे चार कन्धों की भी ज़रुरत नहीं;
उठा लेती हैं, अपने सपनों की लाश,
अपने ही कन्धों पर.

इसे  किसी लड़के के मज़बूत कंधे नहीं चाहिए,

मज़बूत कंधे वाले लड़के का महत्व, नहीं  है किसी से कम;
बस उसका अपना एक स्थान है,
वो भी एक इंसान है, और शायद लड़की भी एक इंसान है,
ऐसा तो नहीं की लड़का भगवान् है,
और अगर नहीं है, तो उसी की कामना क्यों,

और अगर है भगवान् तो फिर,
करले पैदा, अपना भगवान्, अपना कृष्ण - कन्हैया,
बिना किसी देवकी के... 

और बसा ले अपना सुन्दर संसार,
बिना किसी लड़की के...














Thursday, May 7, 2020

आपका दूसरा बेटा !

अस्पताल में; पापा से नर्स ने पूछा ,
कोई बच्चा है आपका दूजा ?

हाँ एक बेटा है, पापा ने दिया जवाब,
सुनते ही बोली नर्स, फिर तो. बधाई हो, जनाब,
                                                            
राखी बांधने वाली आ गयी,बेटी हुई है,
अंदर जा के देख लें, पलंग पर लेटी हुई है.

और सुनते ही पापा की आँखें भर आयी,
उनके लिए तो मानो, स्वर्ग से परी उतर आई.

देखते ही मुझको माँ-पापा बोले कितनी सूंदर है,
नर्स फुसफुसाती हुई बोली, इतनी भी नहीं है.

तब भी सुन के अनसुना कर दिया, आज भी कर देते हैं,
जब दुनिया कमियां निकलती है, वो दोनों मुझे आत्म विश्वास से भर देते हैं.

वो कहते रहे मेरी बेटी, मेरे बेटे से कम नहीं,
और लुटाते रहे, मुझपे सबकुछ, उनकी कभी आँखें हुई नम नहीं।

पैरो पर पैर रख कर चलना सिखाया ,
जितना चाहती थी, उतना पढ़ाया ।

कहीं आ ना जाये, मुझमें ज़रा भी अहम्,
इसलिए बीच बीच में डांट का  बाण भी बरसाया।

दोनों काम पे जाते थे ना, तो उन्हें लगा कही प्यार की कमी ना हो जाये,
तो बस प्यार का तालाब बहाते गए, कि खुशियों के बारिश में कमी ना रह जाये। 

बहार जाते वक़्त, माँ का कहना,
कि गैस से दूर रहना, 

कहती वो, आखरी दो रोटी तुम सेकोगी,
तभी तो कुछ सीखेगी,

ससुराल में खिला रही हो ना, सबको खाना पेटभर,
कुछ ऐसे तय किया है मैंने,अब तक, ज़िदगी का सफर.

कई बार आसूं दिए हैं मैंने उनको, 
कहीं फर्स्ट आ गयी, कहीं फिस्सडी रह गयी,

क्या क्या नहीं किया इन्होने,
मेरे होने के बाद इनकी ज़िन्दगी बस एक काडड्डी रह गई.

सांस भी नहीं ले पाते थे, कहीं ज़िन्दगी में मैं न जाऊं हार,
कहीं ऐसा भी होता है क्या, इतना निऱ्स्वार्थ प्यार।

और आज वो खुश भी हैं शायद,
इतना कुछ दिया है बचपन से, और अब भी बस देते ही जा रहे है,

याद नहीं मुझे की कभी अपने लिए कुछ माँगा हो मुझसे।
जो प्यार अब मुझे देना चाहिए, वो भी बिना लिए बस देते जा रहे हैं. 

और इतना भर दिया है मुझे प्यार से, की किसी और को देने में कम  न पड़े,
पर, अब पीछे मुड़के देखती हु ना, तो सोचती हु छुपाये थे अपने सच बड़े.

कहा था आपने मैं भी बेटा हु आपका,  पर ये नहीं कहा था कब तक के लिए,
आपका और मेरा परिवार  एक ही हैं, पर वो भी बस कुछ वक़्त के लिए.

अब लगता है,  काश की मैं आपका बेटा ही होता ,
सिर्फ आपके लिए नहीं, सचमुच के लिए,

वैसे तो तब भी आप कोई चाहत ना करते,
पर मेरी तसल्ली के लिए, मेरा सबकुछ आपका ही होता,

और कम  से कम ,हमारा घर एक होता,
जब तक ज़िन्दगी है, तब तक के लिए.





Tuesday, April 28, 2020

मेरी चाह-हत


कुछ थकान सी थी, थी माथे पे शिकन,
एक झड़प हो गयी थी, इसलिए दुखी था मेरा मन
बस तभी किसी ने, तेरा नाम पुकारा,
एक दोस्त ने तेरी तरफ किया इशारा;

और फिर देखते ही तुझे,
एक अजीब सा सुकून मिला,
और भूल चला मैं,
हर शिकवा गिला;

पर कभी कभी, समझ नहीं आता,
तेरा अंदाज़ ,
कभी मीठा, कभी फीका,
बदलता तेरा मिजाज ।

और जगह जगह बदलता
तेरा रवैया,
फिर भी तेरे बिना चलता नहीं,
मेरी गाड़ी का पहिया।

लत कह ले, या कह दे की तू कोई गलती है,
पर सच तो ये हैं,
तेरे बिना मेरा दिन नहीं चढ़ता,
ना शाम ढलती हैं।

बोहोत खूबसूरत लगती है तू,
गेहुंए से रंग में,
जाने कैसे घुल जाती है तू,
मेरे अपनों के संग में।

वैसे तो मुझे तेरी ज़रुरत,
हर वक़्त होती है,
पर जब घर पर मिलती है तू,
तेरी बात ही कुछ और होती है।

किसी और की गर्मी से,
जहाँ गरम खून होता है ,
तेरी गर्माहट ही सच्ची मोहोब्बत है,
तुझसे ही ज़िन्दगी में सुकून होता है।

जब भी तुझसे मिलने की बात होती है,
बस हाँ में ही, मेरी राय होती है।
अब उस एहसास को, कैसे बयान करुँ,
जब मेरे हाथों में, मेरी एक कप चाय होती है।




Thursday, April 9, 2020

लॉक्ड डाउन

काम पे, ना जाने कितनी शामें बीतीं,
घर पर एक आराम भरी  शाम के इंतज़ार में;
कटती नहीं, वो ही शामें ,
अब अपने ही परिवार में।

वक़्त नहीं था कल,
ख़ुद के, पौधों को पानी देने का,
अब गमलों की भी गिनती,
होने लगी है, यार में।

माँ- बाप, भाई- बहन , पति-पत्नी, बच्चे,
रविवार के,जो मोहताज रह गए थे,
दरख़्वास्त है,
इन्हें धोका न दें,
बने रहें चार दिवार में।

कुछ हफ्ते की गयी, घरवालों की मदद,
वो प्यार, वो व्यव्हार,
ज़िन्दगी भर की होंगी ये यादें ,
इस अवसर को,यूँही ना जाने दें बेकार में।

नींद, सुख, चैन,
वो घर का ही खाना, घर पे ही खाना,
ना जाने क्या क्या खोया है,
ज़िन्दगी की तेज़ रफ़्तार में  ।

वो बचपन का सुकून,
वो ठहराव, वो धीरे धीरे बीतता दिन,
बहुत कुछ बटोरने का मौका है,
इस लॉक्ड डाउन के दरकार में।

Tuesday, March 31, 2020

मुझी को रोना है

बंद देश में, सोचता हूँ, कहाँ जाऊँ,
भूख से तड़पते बच्चो को,
रोटी मैं कैसे खिलाऊँ?

फ़िर सोचता हूँ, जोखिम उठा ही लेता हूँ,
कोरोना से तो बचने की भी गुंजाईश है,
पर खाली पेट, कब तक ज़िंदा रह पाऊं?

दम तो बिन कोरोना, भी घुट गया,
माँ पहले ही बीमार है, बूढ़े पापा लाचार हैं,
इन्हे सौ मील, अस्पताल कैसे ले जाऊं?

बताया था किसी ने, इंसान से इंसान में,
सफर करती है ये बीमारी,
जो मैं ढूँढू, इंसान को, इंसान कहीं ना पाऊँ!

सुना है आप भी सोचते हैं,
मेरे परिवार के बारे में,
आप ही बताओ,
मैं कोरोना से मरू, या 
भुखमरी से मर जाऊँ ?




Sunday, May 5, 2019

I am Miss Fit - Missfit

I am a little different than a few,
& that few contains, you, you & all of you;
The only person likes me & like me is her,
She appears only when I stand in front of a mirror;

Yes I can't enjoy, the thing you do;
But why am I being judged by you?
I am also a human, and from the same planet,
Atleast I don't fake my hobbies nor I plan it.

I'm sure, in the bunch of darkness, there must be a lit
Existing some people, faking to be a fit,
I am waiting to get dissolved in their world, or rather be alone;
or Missfit is the name, I am more than happy to own...





मुझे कविता लिखना पसंद है… इन्हें कविता पढ़ना बिलकुल पसंद नहीं…. इसलिए अक्सर इनसे नाराज़ होकर इन्हीं की शिकायत… पन्नों में उतार देती हूँ… जान...