Sunday, October 24, 2010

क्यूँ आज मेरा दिल काश पे रुक जाता है,

क्यूँ आज मेरा दिल काश पे रुक जाता है,
काश के सहारे जीना ,ज़िन्दगी का मायना बनता जाता है.

काश की मैं जब कॉलेज से लौटती ,तो माँ मेरा इंतज़ार करती…
मैं माँ का हाथ पकड़ कर, सरे दिन का हाल बयां करती….
माँ की हाथ की चाय अब क्यूँ मुझे सुनहेरा सपना नज़र आता है…
क्यूँ मेरा दिल इस कदर काश पे रुक जाता है….

जहाँ पापा से बातें किये बिना मेरा दिन नहीं काटता था.
उनकी डांट क बिना सूरज आसमान पे नहीं चडता था…
उनसे मिलने को ये दिल कितना तरस जाता है….
क्यूँ मेरा दिल इस कदर काश पे रुक जाता है….

आज अपने ही आशियाने में , मेहमान से जाते हैं…
इन्सान तो एक बार मरता है, पर हम अपनो से बिछड़ के
बार बार मर जाते हैं….

काश मेरे इस कदम में भी पापा की उंगलिया साथ होती…
मेरी माँ का अंचल होता, तो ज़िन्दगी में भी क्या बात होती…
सच तो ये है..मैं आपके बिना कुछ भी नहीं…
मेरे कवाब कवाब नहीं, मेरी हकीकत हकीकत नहीं….

हँसना तो पड़ता है हमे, पर तन्हाई में आंखें रोती हैं …
क्यूँ दूर जाकर अहसास होता है… अपनों की कमी क्या होती है

ये सब कहते कहते…मेरे दिल पे तुफान सा छा जाता है…
इन नम आँखों के सहारे , कुछ और न बोला जाता है…
काश मेरी आवाज़ आपके साथ, वो भी आज सुन रहे होते…
पर क्यूँ ये काश हमेशा काश रह जाता है…
और आज फिर मेरा दिल काश पे रुक जाता है.

2 comments:

  1. mujhe pata hai aapko kaisa lagta hoga,main bhi iss daur se gujer chuka hu,ye to wakt ki baat hai kabhi khusi kabhi gum,mujhe yakin hai ek din aapka aangan khushiyo se bhara hoga bhara hoga.

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