Sunday, October 24, 2010
हजारो बार हम मरते हैं....
बेवजह उन्से प्यार करते हैं....
कयल क्यू रखेगा कोई हमारा,
जब उन्हें पता ही नहीं प्यार किसे कहते हैं...
वो तो अपनी दुनिया में मस्त हो गए...
तो हम क्यू किसी को अपना कहने में डरते हैं....
लोगों को लगता है हम शयरण हैं...
पैर किसे पता,हम अपनी ही दस्ता कहते हैं....
बड़ी अजीब बात है,हम रोते हुए दस्ता सुनते हैं अपनी,
और लोग वह वह करते हैं......
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मुझे कविता लिखना पसंद है… इन्हें कविता पढ़ना बिलकुल पसंद नहीं…. इसलिए अक्सर इनसे नाराज़ होकर इन्हीं की शिकायत… पन्नों में उतार देती हूँ… जान...
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Haan main galat thi …. Laga tha mujhe mar jaungi teri rusvaiyon ke bad, Dil bhi dhadakna chod dega , teri parchhiyon ke ...
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A broken girl trying to be strong, She wakes at night long very long, A pool of tears which she hides, A broken dream on whic...
वह वह,,,,
ReplyDeletesorry