Monday, November 22, 2010

मुझे मेरे ख्वाब नज़र नहीं आते है,


इस धुन्द्लाती हुई ज़िन्दगी में,

मुझे मेरे ख्वाब नज़र नहीं आते है,

क्या करूँ? कोहरा इतना घना है की,

मुझे मेरे ही अहसास नज़र नहीं आते हैं,

कुछ खेल खेला ज़िन्दगी ने ,तेरी ज़िन्दगी के साथ,

की मेरी ज़िन्दगी सारी बदल गयी,

अब तो ये आलम हैं की मुझे,

बिखरे हुए दिल के टुकड़े भी आस पास नज़र नहीं आते हैं.

प्यार की बड़ी बड़ी बातें किया करने वाले हम,

वक़्त के आगे मोहताज़ नज़र आते हैं,

और गम को छुपाये अपनी हसी में हम,

घुमा करते हैं हर जगह,

और फिर भी लोग कहा करते हैं,

की तुम्हारे बिना हम बेजान नज़र आते हैं.



v

4 comments:

मुझे कविता लिखना पसंद है… इन्हें कविता पढ़ना बिलकुल पसंद नहीं…. इसलिए अक्सर इनसे नाराज़ होकर इन्हीं की शिकायत… पन्नों में उतार देती हूँ… जान...