Thursday, December 25, 2014

पापा की बेटी


माँ ने मुझको जनम दिया,
माँ ही दुनिया में लायी है।
पर माँ की गोद क़े पहले,
मैंने पापा की गोद पायी है। 


माँ ने  झुलाया था जो,
वो झूला पापा से बंधवाया था। 
जो फ्रॉक पहनाया था माँ ने ,
वो पापा ने ही दिलाया था। 

उंगली पकड़ कर मेरी माँ ने,
मुझको चलना सिखाया था। 
पापा ने मेरे  कदमों को अपने पैरो पे रख कर,
ज़िन्दगी का रास्ता दिखाया था। 

ऊपर वाले ने माँ का प्यार दिया तो,
पापा की डांट भी खिलाई है। 
माँ की बोली बोलती हूँ पर ,
आदतें पापा की समाई हैं। 

आंखे दी हैं माँ जैसी पर,
 नज़रें पापा की पायी हैं। 
माँ के खाने ने बड़ा किया और ,
पापा की सीख ने ज़िन्दगी बनायीं है। 

जब अँधेरे से डरने पर ,
माँ ने रौशनी करना सिखाया । 
पापा ने सिखाया अँधेरे से लड़ना  ,
बनकर साथ ना छोड़ने वाला साया। 

चोट लगने पर ज़ुबान माँ कहती,
और नज़रे पापा को ढूंढ़ती रहती। 
सारे दर्द दूर हो जाते,
जब मैं पापा का हाँथ थाम लेती। 

प्यार कितना भी है मुझे मेरी माँ से,
फिर भी मुझसे ये दुनिया है कहती,
दिखती हूँ मैं माँ जैसी ,
पर हूँ मैं अपने पापा की बेटी। 









1 comment:

मुझे कविता लिखना पसंद है… इन्हें कविता पढ़ना बिलकुल पसंद नहीं…. इसलिए अक्सर इनसे नाराज़ होकर इन्हीं की शिकायत… पन्नों में उतार देती हूँ… जान...