Tuesday, December 30, 2014

Eyes full of tears!

A bit of rain,
A bit of cry...
I love you a lot,
But I don't know why...
I can't see you,
For I don't know how many years...
Don't leave me honey,

With eyes full of tears...

Thursday, December 25, 2014

पापा की बेटी


माँ ने मुझको जनम दिया,
माँ ही दुनिया में लायी है।
पर माँ की गोद क़े पहले,
मैंने पापा की गोद पायी है। 


माँ ने  झुलाया था जो,
वो झूला पापा से बंधवाया था। 
जो फ्रॉक पहनाया था माँ ने ,
वो पापा ने ही दिलाया था। 

उंगली पकड़ कर मेरी माँ ने,
मुझको चलना सिखाया था। 
पापा ने मेरे  कदमों को अपने पैरो पे रख कर,
ज़िन्दगी का रास्ता दिखाया था। 

ऊपर वाले ने माँ का प्यार दिया तो,
पापा की डांट भी खिलाई है। 
माँ की बोली बोलती हूँ पर ,
आदतें पापा की समाई हैं। 

आंखे दी हैं माँ जैसी पर,
 नज़रें पापा की पायी हैं। 
माँ के खाने ने बड़ा किया और ,
पापा की सीख ने ज़िन्दगी बनायीं है। 

जब अँधेरे से डरने पर ,
माँ ने रौशनी करना सिखाया । 
पापा ने सिखाया अँधेरे से लड़ना  ,
बनकर साथ ना छोड़ने वाला साया। 

चोट लगने पर ज़ुबान माँ कहती,
और नज़रे पापा को ढूंढ़ती रहती। 
सारे दर्द दूर हो जाते,
जब मैं पापा का हाँथ थाम लेती। 

प्यार कितना भी है मुझे मेरी माँ से,
फिर भी मुझसे ये दुनिया है कहती,
दिखती हूँ मैं माँ जैसी ,
पर हूँ मैं अपने पापा की बेटी। 









Wednesday, December 10, 2014

Jane do...

Ek Anjan shehar ke maar se lachar ho ker boli wo ladki ab mujhe mar jane do,
Is shikari ke jaal ke janjal se ab nikaal do mujhe, ab to mujhko ghar jane do,

Seh liya akelepan ka khanjar itna, ki ansu ka matlab hi bhul gayi wo,
dekh liya itna khaufnak nazara ki boli ab ek bar fir meri aankh bhar jane do,

Naa jane kitne hadse dekhein, na jane kitni moutein mari,
Dard ne is kadar jakda, aur wo kehti rahi ki bas ab mujhe aage badh jane do,

khela uske jazbaton se, wo ladti rahi halaton se.
Jin hadso se darti thi duniya, wo boli mujhe in hadso ke sath ab pal jane do.

Mera shareer zinda hai to kuchh log zinda samajhte hain mujhe,
Khatam ker do unka ye veham, mere shareer ko bhi aatma ke sath ab so jane do.







मुझे कविता लिखना पसंद है… इन्हें कविता पढ़ना बिलकुल पसंद नहीं…. इसलिए अक्सर इनसे नाराज़ होकर इन्हीं की शिकायत… पन्नों में उतार देती हूँ… जान...