Saturday, September 5, 2020

गुरु

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 सुनो गगन की गहन गरीमा,

दुनिया में प्रकाश फैलाये;

जैसे सूरज की लालीमा ,

गगन पे अपना गुंजन गाये;


गुरु ही जग के हैं स्वामी,

दूर करें सबकी खामी;

मंज़िल तक ले जाएँ गुरू,

गुरु पर तुम ही तुम करो गुरूर ;


गुरु पिता हैं, गुरु हैं माता,

बिना गुरु कुछ हमे न आता,

जन्म से लेकर मृत्यु तक,

ऋणि रहेंगे गुरु के सब ;


चूमे चोटियां चलकर चिन्हों पर जिनके;

वो गुरु हैं, हम उनके लघु से तिनके,

गुरु का प्रेम है अमूल्य, है अपरम्पार ,

          जिसके बिना सभी का जीवन है बेकार ! 

           

क्यों एक ही दिन उन्हें याद करें,

जो गुरु हमें आबाद करें,

हर दिन उनका हो,

बस यही रहे फरमान,

जिसने बनाया हम सबको आदमी से इंसान।  



मुझे कविता लिखना पसंद है… इन्हें कविता पढ़ना बिलकुल पसंद नहीं…. इसलिए अक्सर इनसे नाराज़ होकर इन्हीं की शिकायत… पन्नों में उतार देती हूँ… जान...